विजया एकादशी व्रत कथा – फाल्गुन या फागुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी
फाल्गुन या फागुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। यह हिंदू धर्म में मान्य सभी महत्त्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। अपने नाम के अनुसार ही यह एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।
श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।
भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है ।
कृष्ण जी बोले – हे युधिष्ठिर ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है, जो विजय को देने वाली है।
विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस एकादशी के माहाम्य मात्र को सुनने या पढ़ने से हमेशा विजय होती है । मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका को विजय किया ।
कथा:-
वनवास के दौरान जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम पंचवटी में निवास कर रहे थे तो दुष्ट रावण ने सीताजी का हरण कर लिया। इस घटना से रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए। सीताजी की खोज के दौरान जब वे मरणासन्न जटायु से मिले तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक को चला गया। कुछ आगे जाने पर उनकी मित्रता सुग्रीव से हुई। हनुमान जी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उन्हें रामजी की मुद्रिका भेंट की। वहाँ से लौटकर हनुमान ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
जब भगवान राम कपि दल के साथ सिन्धु तट पर पहुँचे तो अगाध समुंद्र ने उनका रास्ता रोक लिया। वहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते थे, जिन्होंने अनेकों ब्रह्मा अपनी आँखों से देखे थे। ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ सेना सहित राम लक्ष्मण जी चल पड़े। शरण में जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम किया और समुद्र से पार होने का उपाय पूछा।
मुनि बोले – कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करो। समुद्र से पार होने का तथा लंका को विजय करने का सबसे सुगम उपाय यही है। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया तथा रामेश्वर पूजन किया । इसी व्रत के फलस्वरूप समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और प्रभु राम ने रावण पर विजय प्राप्त की।
व्रत विधि:-
दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें।
व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर उस कलश में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें।
इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।
फलाहार- नारायण की स्वर्ण मूर्ति रखकर धूप दीप नैवेद्य आदि से पूजा करें । इस दिन सिंघाड़ों का सागार लेना चाहिए ।
कीर्तन:-
रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।
व्रत का समापन:-
द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि विजया एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।
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