वरूथिनी एकादशी व्रत कथा

वरूथिनी एकादशी व्रत कथा – बैशाख मास कृष्ण पक्ष एकादशी

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है।वरुथिनी शब्द संस्कृत भाषा के ‘वरुथिन्’ से बना है, जिसका अर्थ है- प्रतिरक्षक या रक्षा करने वाला। वैशाख कृष्ण एकादशी का व्रत भक्तों की हर संकट से रक्षा करता है, इसलिए इसे वरुथिनी कहा जाता हैं। यह एकादशी पुण्य देने वाली, सौभाग्य प्रदायिनी एकादशी है, इसका व्रत सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पाप व ताप दूर हो जाते हैं, एवं अनन्त शक्ति मिलती है और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए। भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है ।

भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम वरूथिनी है । इसका व्रत महा फलदायक है । शास्त्र का लेख हाथी,घोड़ों,भूमि दान को उत्तम कहता है। भूमि दान से अधिक तिल दान , तिल दान से अधिक स्वर्ण दान और स्वर्ण दान से अधिक अन्नदान श्रेष्ठ है । अन्न दान और कन्या दान का महत्त्व हर दान से ज़्यादा है लेकिन वरूथिनी एकादशी का व्रत रखने वाले को इन दोनों के योग के बराबर फल प्राप्त होता है। जो फल कुरूक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय स्वर्ण दान से मिलता है वही फल इस एकादशी का व्रत रखने से मिलता है। इस व्रत को विधि पूर्वक करने वाले पर यमराज प्रसन्न होते हैं । यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।

कथा:-
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत दानवीर तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी वहां एक जंगली भालू आया और राजा का पैर काटने लगा लेकिन राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। कुछ देर बाद पैर खाते-खाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर तपस्वी धर्म के अनुसार उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की और करुण भाव से भगवान श्री हरि विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही पीड़ा महसूस कर रहा था और अपने अंग भंग होने का भी शोक मना रहा था। उसे दुखी देखकर भगवान श्री हरि विष्णु बोले- हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा नगरी जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा पाकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया। इसके प्रभाव से वह शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया।

इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है। अत: जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। इस दिन भक्तिभाव से भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को करने से भगवान मधुसूदन की प्रसन्नता प्राप्त होती हैं और सम्पूर्ण पापों का नाश होता है व सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा भगवान का चरणामृत ग्रहण करने से आत्मशुद्धि होती है।

इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।

फलहार – इस दिन खरबूजे का सागार लेना चाहिए ।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

****

एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *