उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – मार्गशीर्ष या अगहन मास कृष्ण पक्ष एकादशी

मार्गशीर्ष या अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री हरि विष्णु  से उत्पन्ना देवी का उद्भव हुआ था। और इसी दिन माता एकादशी ने राक्षस मुर का वध किया था। उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को बेहद पवित्र माना गया है।  ऐसी मान्यता है कि  उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख शांति मिलती है। मृत्यु उपरांत भगवान विष्णु के परम धाम बैकुंठ का वास प्राप्त होता है।

कथा:-

श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा इस दिन किस देवता का पूजन करना चाहिए यह भी बताइए ।

वही कथा सूत जी ने ऋषियों को सुनाई कि – सतयुग में एक महाभयंकर  मुर नामक राक्षस प्रकट हुआ, उसने अपनी शक्ति से देवताओं को पराजित किया और अमरावती पुरी से नीचे गिरा दिया। बेचारे देवता मृत्यलोक की गुफाओं में निवास करने लगे और कैलाश पति की शरण में जाकर दैत्य के अत्याचारों का तथा अपने महान दुख का वर्णन किया। शंकर जी कहने लगे आप भगवान विष्णु की शरण में जाइये, वही आपका दुख दूर करेंगे।

आज्ञा पाकर सब देवता क्षीर सागर में गये वहाँ शेष की शय्या पर भगवान विष्णु शयन कर रहे थे। देवताओं ने वेद मंत्रों द्वारा स्तुति करके भगवान को प्रसन्न किया और प्रार्थना करके इन्द्र देव ने बताया कि चन्द्रावती नगरी में एक नाड़ाजग नाम का दैत्य ब्रह्मवंश से उत्पन्न हुआ था और  उसके पुत्र का नाम मुर है ।उस मुर दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया है और हमारे लोक पर कब्जा कर लिया है। वह स्वयं ही सूर्य बन कर जल का आकर्षण करता है , और स्वयं ही मेघ बनकर जल बरसाता है। भूलोक के बड़े – बड़े कर्मचारी देवता सब शरणार्थी बन चुके हैं। अतः आप उस बलशाली दैत्य को मार कर हमारा दुःख दूर कीजिये ।

भगवान बोले देवताओ ! मैं तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संहार करूंगा, आप निश्चिंत होकर  चन्द्रावती नगरी पर चढ़ाई करो। मैं तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आऊँगा। आज्ञा मान कर देवता लोग वहाँ आये, जहाँ युद्ध भूमि में मुर दैत्य गरज रहा था।  युद्ध प्रारम्भ हुआ, परंतु मुर के सामने देवता घड़ी भर भी न ठहर सके। भगवान विष्णुजी भी आ पहुँचे, सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी- शत्रुओं का संहार करो। चक्र ने चारों ओर सफाई कर दी पर एक मुर दैत्य का सिर न काट सका और न ही विष्णु जी की गदा उसकी गर्दन तोड़ सकी। भगवान ने सारंग धनुष हाथ में लिया बाणों द्वारा युद्ध प्रारंभ हुआ, परंतु शत्रु को मार न सके । अंत में भगवान और मुर कुश्ती करने लगे, हजारों वर्ष व्यतीत हो गये परंतु प्रभु का एक भी दाव बन्ध सफल न हुआ।

मुर दैत्य पर्वत के समान कठोर था, प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था, वे थक गये और मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई और वे विश्राम हेतु युद्ध क्षेत्र को छोड़कर चले गए। उनकी विश्राम भूमि बद्रीकाश्रम थी, जहां हेमवती नमक एक गुफा थी जो बारह योजन की थी। भगवान  उस गुफा में  जाकर सो गये परंतु मुर दैत्य भी पीछे – पीछे  वहां चला आया।

मुर सोते हुए शत्रु अर्थात प्रभु  को मारने के लिए तैयार हो गया। उस समय एक सुंदर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई, जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे उसने मुर के अस्त्र – शस्त्रों के टुकड़े – टुकड़े कर दिये, रथ भी तोड़ दिया। तब मुर दैत्य कन्या से कुश्ती करने को समीप आया, कन्या ने धक्का मारकर उसको जमीन पर गिरा दिया और कहा कि यह मल्ल युद्ध का फल है और जब मुर दैत्य उठा तो उसका सिर काट कर कहा कि यह तेरे हठ योग का फल है। मुर के मरने के पश्चात उसकी सेना पाताल को भाग गई।

जब भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली- यह दैत्य आपको मारने की इच्छा करके आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया। भगवान बोले , तुमने सब देवताओं की रक्षा की है, मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ  और वरदान देने को तैयार हूँ। जो भी आपके क्रुद्ध मन में इच्छा हो मांग लो ।

कन्या बोली प्रभु मैं तो आपका अंश हूं जैसी आपकी इच्छा हो मुझे वैसा आशीर्वाद दें। भगवान बोले तुम एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई हो, इस कारण तुम्हारा नाम उत्पन्ना एकादशी प्रसिद्ध होगा, और आज से जो भी तुम्हारा व्रत करेगा, उनके घर में पुत्र, धन, आयु और कीर्ति  का विकास होगा और अन्त में वह बैकुंठ लोक को प्राप्त होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तुम्हारा व्रत करें उनको सब तीर्थों के स्नान का फल मिलेगा, घोर पापों से उद्धार करने वाला तुम्हारा यह व्रत होगा। ऐसा कहकर भगवान श्री हरि अन्तर्ध्यान  हो गये ।

पतित पावनी विश्व तारणी माता का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में हुआ। इस कारण इनका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध हुआ।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए।

इस व्रत में फलों का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख  करके प्रार्थना करनी चाहिए।

फलाहार/भोजन:-

इस दिन गुड़ और बादाम का सागार होता है ।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

 

एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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