परमा एकादशी व्रत कथा

परमा एकादशी व्रत कथा – अधिक मास कृष्ण पक्ष एकादशी

अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को हरिवल्लभा या परमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी।
युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम, व्रत विधि बतलाइये, तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।

भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है।भगवान कृष्ण बोले- हे धर्म पुत्र ! अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम परमा है। इसके महात्म्य की कथा कहता हूं सुनो!

कथा:-

प्राचीन समय में काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । किसी पूर्व जन्म के पाप के कारण वह अत्यंत दरिद्र था। उसकी स्त्री का नाम पवित्रा था , वह पतिव्रता थी तथा अतिथि सत्कार भी करती थी । आप भूखी रह जाती थी परंतु आथित्य सत्कार करना नहीं छोड़ती। एक दिन ब्राह्मण अपनी स्त्री से बोला: हे प्रिय! जब मैं धनवानों से धन की याचना करता हूँ तो वह मुझे मना कर देते हैं। गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती, इसलिए यदि तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेश जाकर कुछ काम करूं। ब्रह्मण की पत्नी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से पाता है। हमें पूर्व जन्म के फल के कारण यह ग़रीबी मिली है। अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। ब्रह्मण को पत्नी की बात ठीक लगी और वह परदेश नहीं गया।

एक दिन संयोग से कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो उस ब्रह्मण के घर पधारे। पति और पत्नी ने उनका श्रद्धा भक्ति से पूजन किया और दरिद्रता के नाश का उपाय पूछा । कौण्डिल्य मुनि बोले- दरिद्रता को दूर करने का सुगम उपाय यही है कि तुम दोनों मिलकर अधिक मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करो , रात्रि को जागरण कर बिगड़े प्रारब्ध को संवार लो । ऋषि ने कहा यह एकादशी धन वैभव देती है तथा पाप का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। यक्ष राजा कुबेर ने परमा एकादशी का व्रत किया था तो उसके प्रभाव से भगवान शंकर ने उसे भण्डारी बना दिया।ऋषि ने कहा: हे ब्राह्मणी! पंचरात्रि व्रत इससे भी ज्यादा उत्तम है। परमा एकादशी के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधानपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए और अमावस की रात्रि तक जागरण करके इसका समापन करना चाहिए।

जो मनुष्य पंचरात्रि एकादशी व्रत के दौरान पांच दिन तक संध्या को फलाहार करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं। जो मनुष्य स्नान करके पांच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वे समस्त संसार को भोजन कराने का फल पाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं, उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल मिलता है। जो मनुष्य उत्तम ब्राह्मण को तिल दान करते हैं, वे तिल की संख्या के बराबर वर्षो तक बैकुंठ में वास करते हैं। हे ब्राह्मणी! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को धारण करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यह तत्काल फल देने वाला व्रत है ऐसा कह कर मुनि चले गये।

ब्राह्मण ब्राह्मणी ने परमा एकादशी का पंचरात्रि व्रत एकादशी से अमावस तक किया । व्रत के प्रभाव से प्रातः समय पड़वा के दिन एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उनको एक उत्तम गृह रहने को दिया और आजीविका चलाने हेतु एक ग्राम भी उनके नाम करके चला गया। इस प्रकार उनकी गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर अंत समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के लोक बैकुंठ को प्रस्थान कर गये। इस परमा एकादशी का माहात्म्य सुनने से व्यक्ति इस लोक में अनन्त सुख भोग कर अन्त में बैकुंठ को जाता है।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। परमा एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु जी का पूजन करना चाहिए। इस व्रत में भगवान विष्णु को तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए। पंचरात्री व्रत- परमा एकादशी के पंचरात्रि व्रत को एकादशी से अमावस तक किया जाता है। इसका विधान वही है जो अन्य एकादशी व्रत का है अंतर सिर्फ इतना है कि इसे पांच दिन तक किया जाता है।

फलाहार:-

जिस महीने के जिस पक्ष में यह एकादशी आए सागार उसी महीने के पक्षानुसार लेना चाहिये ।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर व्यक्ति को उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है। (नोट :- अधिक मास को ही लौंद मास, मल मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।)

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एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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