पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – अश्विन या क्वार मास शुक्ल पक्ष एकादशी
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु श्री हरि को नमस्कार करते हैं, वे कभी नरक में नहीं जाते। श्री हरि विष्णु जी के नामजप और कीर्तन मात्र से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है।
इस एकादशी से एक दिन पहले भगवान राम ने रावण का वध किया था। अतः ब्रह्म हत्या के दोष के निवारण हेतु मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने लक्ष्मण जानकी तथा भालू बन्दरों सहित पाशांकुशा एकादशी का व्रत किया और पाप रहित हो गये । इस एकादशी व्रत को करने से राजसूय यज्ञं और अश्वमेघ यज्ञ के तुल्य फल मिलता है। श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी।युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।
भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है । भगवान मधुसुदन बोले- हे युधिष्ठिर ! आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पाशांकुशा है । यह पाप का निरोध करने वाली है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को मोक्ष, अर्थ और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। इससे व्रती को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा सर्व सांसारिक सुख मिलते हैं। इस व्रत को करने से पितृ पक्ष की दस पीढ़ी और मातृ पक्ष की दस पीढ़ी विष्णु जी का स्वरूप होकर बैकुण्ठ को जाते हैं।
कथा:-
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। वह जीवन भर हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्या भाषण आदि करता रहा। उसने जीवन में कभी अपने मुख से ईश्वर का नामजप तक न किया। जब उसके जीवन का अंतिम समय आया, तब यमराज ने अपने दूतों से कहा कि वे क्रोधन को ले आयें। यमदूतों ने क्रोधन को एहसास दिलाया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु के भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम जा पहुँचा। उनको दंडवत प्रणाम करके उनको सारा वृतांत कहा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। क्रोधन ने मुनि द्वारा बताई विधि से एकादशी का व्रत एवं पूजन किया। रात में जागकर श्री हरि का नामजप और कीर्तन किया। इस प्रकार पापांकुशा एकादशी के व्रत-पूजन के प्रभाव से वह महापापी भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। जब प्रातः यमदूत उसे लेने आए तो उसको न पाकर अचंभित हो गए और बिना क्रोधन के यमलोक वापस लौट गए। इस प्रकार यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु श्री हरि विष्णु का नमजप करते हैं, वे कभी नरक में नहीं जाते।
व्रत विधि:-
व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। इस दिन भगवान पद्मनाभ का पूजन करें । इस दिन मौन रखकर भगवद स्मरण भी करना चाहिए । इस व्रत में भगवान विष्णु को तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।
फलहार:-
इस दिन सांवा ( मुन्यन्न या समा Indian barnyard millet) का सागार लेना चाहिए । सांवा समा के व्रत वाले चावल को कहते हैं।
कीर्तन:-
रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।
व्रत का समापन:-
द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, जल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।
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