मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा- मार्गशीर्ष या अगहन मास शुक्ल पक्ष एकादशी

पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था।

श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।

वही कथा सूत जी ने ऋषियों को सुनाई कि – भगवान श्री हरि जी बोले मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोक्षदा है । यथा नाम तथा गुण अर्थात् मोक्ष देने वाला व्रत है। बारह मासों में मैं मार्गशीर्ष को उत्तम मानता हूँ। जहां कृष्ण पक्ष की एकादशी से प्रेम उत्पन्न होता है वहीं शुक्ल पक्ष का व्रत मोह का क्षय करने वाला अर्थात मोक्ष दाता है। इस व्रत में दामोदर (श्री हरि विष्णु) भगवान का पूजन करना चाहिए। आज के दिन व्रतधारियों को यजमान से मेरी उक्खल बन्ध लीला का श्रवण करना श्रेयस्कर है । अब मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा सुनाता हूँ ।

कथा:-

प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा रहता था जो बहुत धर्मात्मा और प्रभु का भक्त था। उसने रात्रि को स्वप्न में अपने पूज्य पिता को नरक भोगते हुए देखा। प्रातः काल ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मणों को बुलाकर पूछने लगा कि मेरे पिता का उद्धार कैसे होगा ? ब्राह्मण बोले- यहाँ समीप में पर्वत ऋषि का आश्रम है उनकी शरणागत से आपके पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जाएँगे ।

राजा पर्वत मुनि की शरण में गया और उनको दण्डवत करके कहने लगा कि मुझे रात्रि को स्वप्न में पिता का दर्शन हुआ वह बेचारे यमदूतों के हाथों से दण्ड पा रहे हैं। आप अपने योग बल से बतलाइये कि उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी ? मुनि ने अपने योगबल का प्रयोग करके बताया कि राजन! पूर्वजन्म के पापों से आपके पिताजी को नर्कवास प्राप्त हुआ है। उन्होंने सौतन स्त्री के वश में होकर अपनी पहली स्त्री को रतिदान का निषेध कर दिया था। इसी दोष से उन्हें नरक की प्राप्ति हुई है।

मुनि ने विचार कर कहा कि धर्म और कर्म सब देरी से फल देने वाले हैं, शीघ्र वरदाता तो केवल शिव शंकर ही हैं। परंतु उनको प्रसन्न करना भी कोई आसान काम नहीं है इसमें देर अवश्य लग जाएगी और तब तक तेरे पिता को बहुत यातनाएं दी जा चुकी होंगी। इसलिए सबसे सुगम और शीघ्र फलदायी मोक्षदा एकादशी का व्रत है उसे विधि सम्मत परिवार सहित करके उसका फल अपने पिता को संकल्पित कर दो , निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी। राजा ने कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत करके व्रतफल पिता को अर्पण कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पिता स्वर्ग को चले गए। मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य जो सुनता है उसे बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए।
इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।

फलहार :-

इस दिन तुलसी की मंजरी का भोग व धूपादि से दामोदर भगवान की पूजा की जाती है । इस दिन बिल्व पत्र का सागार लेना चाहिए ।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। साथ ही आज के दिन भागवत गीता का पाठ करना श्रेयस्कर माना जाता है। क्योंकि आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिससे अर्जुन के मोह का क्षय हुआ था और वे अपने कर्म मार्ग पर अग्रसर हुए थे।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

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