कामदा एकादशी व्रत कथा – चैत्र मास शुक्ल पक्ष एकादशी
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी व्रत ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करने वाली है। इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है। जो व्यक्ति विधिपूर्वक इस व्रत को करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे सभी पापों से छुटकारा मिलता है। इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम, व्रत विधि बतलाइये, तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है ।
भगवान कृष्ण बोले- युधिष्ठिर ! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है । इसका माहात्म्य राजा दलीप ने गुरु वशिष्ठ से पूछा था । वशिष्ठ जी ने जो कथा सुनाई इस प्रकार है –
कथा:-
एक भोगीपुर नगर में पुण्ड्रीक नामक राजा राज्य करता था। उसका दरबार किन्नरों, गंधर्वो व अप्सराओं से भरा रहता था, जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। उसकी सभा में गंधर्व गान करते थे, अप्सरा नृत्य करती थीं। उनमें ललिता नाम अप्सरा और ललित नामक गंधर्व भी रहता था, उनका परस्पर अति प्रेम था।अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक दिन राज्य सभा में ललित गंधर्व गान कर रहा था, कि अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। उसकी स्मृति में उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। ललित को बुलाकर राजा ने कहा तुमने मेरी सभा में स्त्री की स्मृति कर अशुद्ध गाना गाया है, इस कारण मैं तुम्हें श्राप देता हूँ – तुम राक्षस बनकर कर्म का फल भोगो ।
पुण्ड्रीक के श्राप से ललित का मुख विकराल हो गया उसको भोजन मिलना मुश्किल हो गया,भूख से दुखी हो ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में घूमता रहा। अपने पति को इस हालत में देखकर ललिता बड़ी दुःखी होती थी और वह भी वन में उसके पीछे विचरण करने लगी । उसी वन में श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता ने मुनि की शरण में जाकर पति के उद्धार का उपाय पूछा।ऋषि को उन पर दया आ गई।
मुनि बोले- चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का विधि सहित व्रत करके उसका पुण्य फल अपने पति को अर्पण कर दो , निश्चय ही वह स्वर्ग को प्राप्त करेगा । अतः ललिता ने कामदा एकादशी व्रत किया तथा रात्रि को जागरण किया, दीप जलाये , प्रभु के गुण गाये। प्रातः ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर भोजन खिलाया , फिर उनकी परिक्रमा कर और उनके पद धोकर वाजपेय यज्ञ का फल लिया । ब्राह्मणों के सामने व्रत के फल को पति को अर्पण करने का संकल्प कर दिया । उसी समय ललित राक्षस योनि से छूटकर पत्नी सहित गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए और स्वर्ग को चले गये।
व्रत विधि:-
व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है।
इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।
फलाहार:-
इस दिन लौंग का सागार लेना चाहिए। इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता है।
कीर्तन:-
रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।
व्रत का समापन:-
द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।
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