कमला या पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

कमला या पद्मिनी एकादशी व्रत कथा – अधिक मास शुक्ला पक्ष एकादशी

अधिक मास में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को कमला या पद्मिनी एकादशी कहते हैं। पद्मिनी एकादशी भगवान श्री हरि विष्णु को अति प्रिय है। इस व्रत को करने वाला बैकुंठ को जाता है। यह अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।

भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है। भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर ! अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मनी है। इसमें मेरी और मेरी प्यारी वृषभानुं दुलारी की तथा शिव पार्वती की पूजा की जाती है। इसके माहात्म्य की कथा पुलसत्य ने नारद ऋषि को सुनाई थी ।

कथा:-

त्रेतायुग में महिष्मति नामक नगरी में कृतवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उनकी कई रानियां थीं परंतु पुत्र एक भी न था । पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने पुत्रेष्ठी आदि अनेक उपाय किये परंतु पुत्र उत्पन्न न हुआ। अंत में यही विचार किया कि गंध मादन पर्वत पर जाकर तपस्या करूँ उसकी स्त्री ने कहा मैं भी साथ चलूँगी। पति और पत्नी दोनों ने गंध मादन पर्वत पर जाकर दस वर्ष तक तपस्या की परंतु सिद्धि को प्राप्त न कर सके। राजा रानी दोनों का माँस सूख गया। हड्डियों का पिंजरा रह गया। रानी ने विचार किया अब महा पतिव्रता मां अनुसूया की शरण में जाकर कोई और उपाय पूछना चाहिए। ऐसा विचार कर वह अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के पास आई। दंडवत प्रणाम कर कहने लगी कि मैं राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री हूँ। पति के साथ तपस्या करने आई थी, परंतु दस वर्ष व्यतीत हो गये भगवान रूठे ही रहे , पुत्र एक न दिया। उनकी प्रसन्नता का कोई उपाय बताइए, जिसके करने से हमारा कल्याण हो।

अनुसूया ने उत्तर दिया अधिक मास जो 32 मास के बाद आता है उसके शुक्ल पक्ष की पद्मनी एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करो। उससे तुम्हें ऐसा अजेय पुत्र मिलेगा, जिसको रावण भी विजय न कर सकेगा। अतः प्रमद्धा रानी ने पद्मनी एकादशी का श्रद्धा से व्रत किया जिसे करने से भगवान रानी के सामने भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कीर्तिवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कीर्तिवीर्य महाप्रतापी राजा था , देवता दैत्य सब उसको प्रणाम करते थे । कालान्तर में उसने रावण को भी बंदी बना लिया लेकिन पुलसत्य मुनि के कहने से उसे छोड़ दिया था । अत : सूत जी ने अठ्ठासी हजार ऋषियों को यह कथा श्री नेमिषारण्य वन में सुनाई थी।इस प्रकार पद्मनी एकादशी व्रत का फल अनन्त जन्मों के पापों को नष्ट कर देता है।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में भगवान विष्णु को तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।

फलहार:-

जिस महीने के जिस पक्ष में यह एकादशी आए, सागार उसी के अनुसार लेना चाहिये।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

इस एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है।

नोट :- अधिक मास को ही लौंद मास, मल मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।

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एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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