एकादशी व्रत

एकादशी व्रत का महत्व: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

धर्म और पूजा के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में, भारतीय समाज में व्रतों का महत्व अत्यधिक है, लेकिन सभी व्रतों में श्रेष्ठ एकादशी व्रत का अपना ही स्थान है। ये व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए होते हैं, बल्कि इनसे व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि और उसे  सांसारिक सुख-शांति की प्राप्ति भी होती है। इस लेख में, हम इसी एकादशी व्रत के बारे में बात करेंगे जो भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

एकादशी व्रत का महत्व:

एकादशी व्रत, हिन्दू पंचांग में हर माह के दोनों पक्ष ( कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष ) की ग्यारहवीं तिथि को मनाया जाता है, और यह एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इसे विष्णु पुराण के अनुसार अपनाने का सुझाव दिया गया है। एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य आत्मा की पवित्रता और शुद्धि प्राप्त करना होता है।

ऐसा माना जाता है कि स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्या दान आदि करने में जो पुण्य प्राप्त होता है एवं ग्रहण के समय स्नान दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कठिन तपस्या तीर्थ यात्रा एवं अश्व मेघादि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है।

एकादशी व्रत करने वाले के पूर्वज पितृ योनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं। एकादशी व्रत करने वाले की दस पीढ़ी पितृ पक्ष की और दस पीढ़ी मातृ पक्ष की और दस पीढ़ी पत्नी पक्ष की बैकुण्ठ धाम को प्राप्त हो जाती हैं। यह व्रत आयु, पुत्र, धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला है।

सांसारिक लाभ:

एकादशी व्रत का पालन करने से सांसारिक लाभ भी होता है। यह व्रत स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है, क्योंकि निर्जला उपवास के दौरान शरीर को आराम और पावित्रता मिलती है।

एकादशी व्रत की शुरुआत कैसे हुई???

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पापों से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग पूछा था। तब भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत की महिमा बताते हुए इसे रखने का निर्देश दिया था। भगवान श्री कृष्ण ने इस व्रत को समस्त दुखों और त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने वाला, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाला, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाला बताया था। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि यह व्रत तुम्हारी सारी पीड़ा को हर लेगा और पापों को भी नष्ट कर देगा। इसके बाद युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण के बताए नियमों के अनुसार इस व्रत को रखा था।  इसके बाद उनके पाप खत्म होने से तमाम कष्टों से मुक्ति मिली थी।एकादशी

व्रत का पालन:

एकादशी व्रत के दिन, भक्त निर्जला उपवास करते हैं, जिसमें वे बिना पानी पीए रहते हैं। कुछ लोग जल और फलाहार के साथ भी इस व्रत को धारण करते हैं। इसके साथ ही वे भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह व्रत बताता  है कि मानव जीवन की यात्रा में आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए संकल्पित होना भी जरूरी है।

एकादशी का भोजन-

एकादशी के व्रत में अन्न खाने का निषेध है, केवल एक समय फलाहारी भोजन ही किया जाता है। इस व्रत में कोई भी अनाज सामान्य नमक, लाल मिर्च और अन्य मसाले व्रती को नहीं खाने चाहिए। सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक और काली मिर्च प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही कुटू और सिंघाड़े का आटा, रामदाना, खोए से बनी मिठाईयाँ, दूध-दही और फलों का प्रयोग इस व्रत में किया जाता है और दान भी इन्हीं वस्तुओं का किया जाता है। एकादशी का व्रत करने के पश्चात् दूसरे दिन द्वादशी को एक व्यक्ति के भोजन योग्य आटा, दाल, नमक,घी आदि और कुछ धन रखकर दान करने का विधान इस व्रत का अविभाज्य अंग है।

एकादशी व्रत में चावल निषेध क्यों???

शास्त्रों में लिखे नियमों के अनुसार इस दिन अन्न खाने की मनाही होती है चूंकि चावल भी अन्न है इसलिए चावल  खाने की भी मनाही होती है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार जो लोग एकादशी के दिन चावल ग्रहण करते हैं उन्हें अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है। हालांकि द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार –

एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि मेधा ने एक बार यज्ञ में आए हुए एक भिक्षु का अपमान कर दिया जिसकी वजह से माता दुर्गा अत्यंत नाराज हो गईं।

माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए तथा उनको मनाने और प्रायश्चित करने के लिए ऋषि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया और उनके अंश पृथ्वी में समा गए। उस प्रायश्चित से प्रसन्न होकर माता शक्ति ने महर्षि को एक आशीष दिया कि उनके अंग भविष्य में अन्न के रूप में धरती से उगेंगे। और बाद में उसी स्थान पर महर्षि मेधा के अंश चावल और जौ के रूप में   उत्पन्न हुए। इस कारण चावल और जौ को जीव माना जाता है।

जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया था, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल खाना जीव का उपभोग करने के बराबर है, और जो व्यक्ति इस दिन चावल खाता है उसे मांसाहार के समान माना जाता है। इसलिए एकादशी को भोजन के रूप में चावल ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।

ज्योतिष मान्यता के अनुसार –

दूसरी तरफ एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे ज्योतिष मान्यता भी है। इसके अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है और पानी का जुड़ाव चंद्रमा से होता है। चंद्रमा का प्रभाव पानी में अधिक होता है और व्यक्ति के शरीर का 70% हिस्सा भी पानी होता है। चंद्रमा मस्तिष्क और हृदय को प्रभावित करता है क्योंकि इसे मन का कारक माना जाता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है, इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का पवित्र और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है, इसलिए एकादशी के दिन चावल और इससे बनी चीजें खाना वर्जित माना गया है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार-

क्योंकि चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है जिससे चंद्रमा मस्तिष्क तथा हृदय को प्रभावित करता है।

चंद्रमा के प्रभाव की वजह से ही एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को मानसिक और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती है।

पुराणों के अनुसार एकादशी के दिन चावल ना खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा मानता है कि जो व्यक्ति इस दिन चावल खाता है उसे मृत्यु उपरांत मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। मुख्य रूप से इस दिन किसी भी तामसिक भोजन का उपभोग ना करें तथा मदिरा का सेवन न करें।

एकादशी व्रत करने की विधि:

एकादशी व्रत हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत हर महीने दो बार आता है, एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में संरक्षक देवता माना जाता है।

पारंपरिक रूप से एकादशी व्रत के नियम बहुत कठोर होते हैं। व्रत रखने वाले को दशमी के दिन से ही दूध, दही, घी, चीनी, मांस, मछली, प्याज, और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन व्रतधारी को निर्जला व्रत धारण करना चाहिए या केवल फलाहार करना चाहिए, और पानी भी सीमित मात्रा में पीना चाहिए।

आज के समय में, इन कठोर नियमों का पालन करना हर किसी के लिए संभव नहीं है। कई लोग अपने व्रत के दौरान दूध, दही, घी, और चीनी का सेवन करते हैं।

वर्तमान में नए दृष्टिकोण के अनुसार  एकादशी व्रत में हर एकादशी के लिए सागर या खानपान का तरीका निर्धारित किया गया है जिससे यह व्रत अधिक लोगों के लिए सुलभ हो सके।

यहां एकादशी व्रत के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं:

* दशमी के दिन से ही दूध, दही, घी, और चीनी का सेवन सीमित मात्रा में करें।

* दशमी के दिन से ही शारिरिक शुद्धता का भी ध्यान रखें अर्थात ब्रह्मचर्य का पालन करें।

* एकादशी के दिन पूरी तरह से उपवास रखें।

* एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन एवं ध्यान करें।

* एकादशी की कथा सुनें या पढ़ें।

एकादशी के दिन क्या करें –

एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर अपने नित्यकर्म से मुक्त होकर भगवान श्रीहरी का भजन एवं वंदन करना चाहिए। एक समय भूखे रहकर एक समय फलाहार करना चाहिए। और ज़्यादा से ज़्यादा भजन करना चाहिए। भगवान को ऋतु फल एवं नैवेद्य का भोग अर्पित कर प्रसाद बांटना चाहिए।

एकादशी व्रत का प्रारंभ कब करें:-

वैसे तो हिंदू पंचांग चैत्र माह से शुरू होता है, परंतु विष्णु पुराण के अनुसार एकादशी माता मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे ही पहली एकादशी माना जाता है। मान्यता है कि एकादशी एक देवी हैं जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। इसलिए मार्गशीर्ष या अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि एकादशी व्रत का प्रारंभ इसी माह की कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी से करना चाहिए।

हर महीने की एकादशियों के नाम इस प्रकार हैं:-

सामान्यतः एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं परंतु अधिक मास वाले वर्ष में इनकी संख्या 26 हो जाती है, जो इस प्रकार है-

मास/माहकृष्ण पक्ष एकादशीशुक्ल पक्ष एकादशी
मार्गशीर्ष/अगहनउत्पन्ना एकादशीमोक्षदा एकादशी
पौष/पूससफला एकादशी पुत्रदा एकादशी
माघ/माहषटतिला एकादशी जया एकादशी
फाल्गुन/फागुनविजया एकादशी रंगभरनी/आमलकी एकादशी
चैत्र/चैतपापमोचनी एकादशीकामदा एकादशी
बैशाखवरूथिनी एकादशी मोहिनी एकादशी
ज्येष्ठ/जेठअपरा एकादशी निर्जला एकादशी
आषाढ़योगिनी एकादशी देवशयनी एकादशी
श्रावण/सावनकामिका एकादशी श्रावण पुत्रदा/पवित्रा एकादशी
भाद्रपद/भादोअजा एकादशी परिवर्तिनी/पद्मा एकादशी
आश्विन/क्वारइन्द्रा/इंदिरा एकादशीपापांकुशा एकादशी
कार्तिक/कतिकरमा एकादशी देवोत्थान/देवउठनी एकादशी
अधिक मासपरमा एकादशी कमला या पद्मिनी एकादशी
(नोट :- अधिक मास को ही लौंद मास, मल मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।)

हिन्दू धर्म में सभी व्रत-उपवास का विशेष महत्व माना जाता है, परंतु इन सभी में सर्वोपरि एकादशी को मना जाता है क्योंकि स्वयं भगवान कृष्ण ने एकादशी को उपवासों में सर्वश्रेष्ठ बताया है। भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने के लिए एकादशी व्रत सबसे उत्तम माना जाता है तथा हर एकादशी का अपना अलग महत्व, कथा और सभी एकादशियों का भिन्न-भिन्न फल भी माना गया है।

एकादशी व्रत हमें आत्मा की शुद्धि का मार्ग दिखाता है और हमें दिव्यता की ओर अग्रसर करता है। यह व्रत भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह हमें सांसारिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शित करता है।

2 comments on “एकादशी व्रत का महत्व: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

  1. Thank you very much for such a religious post. Your post gave a very good information about Ekadashi Virat.

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