देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा – कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकादशी

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठान या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन क्षीरसागर में सोए हुए भगवान विष्णु चार मास की योग-निंद्रा से जागते हैं। इसी दिन तुलसी माता और शालिग्राम भगवान के विवाह का भी आयोजन किया जाता है। और इसी दिन से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए।

भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ , तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है।भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम प्रबोधिनी एकादशी है ।

इसके माहात्म्य को ब्रह्मा जी ने नारद ऋषि से कहा था – ब्रह्मा जी बोले हे नारद! इसमें भगवान विष्णु अपनी निंद्रा अवस्था से जागते हैं। इस कारण इसको देवोत्थान या देवउठनी एकादशी भी कहा गया है। जिसके हृदय में प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने की इच्छा उत्पन्न होती है उसके सौ जन्म के पाप भस्म हो जाते हैं और जो व्रत को विधिपूर्वक करता है उसके अनन्त जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं । देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से मनुष्य को आत्मबोध होता है । कार्तिक मास में जो तुलसी द्वारा भगवान का पूजन करता है , उसके दस हजार जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं । जो पुरुष कार्तिक में वृन्दा का दर्शन करते हैं , वह हजार युग बैकुण्ठ में निवास करते हैं जो तुलसी का पेड़ लगाते हैं , उनके वंश में कोई नि : संतान नहीं होता । जो तुलसी की जड़ में जल चढ़ाते हैं , उनका वंश सदैव फला फूला रहता है । जिस घर में तुलसी का पेड़ हो, यमराज के दूत वहाँ स्वप्न में भी नहीं विचरते । जो पुरुष तुलसी वृक्ष के पास श्रद्धा से दीप जलाते हैं , उनके हृदय में दिव्य चक्षु का प्रकाश होता है । जो सालिग्राम की चरणोदिक में तुलसी मिलाकर पीते हैं , उनके निकट अकाल मृत्यु नहीं आती , सर्व व्याधियां नष्ट हो जाती हैं।

कथा:-

एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा- ‘हे नाथ! आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक को सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। अत: आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराए और बोले- देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों को और ख़ासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कहने से आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय आपका और देवगणों का अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों को परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्थान के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में मैं तुम्हारे सहित निवास करूँगा।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी का भी पूजन करें । इस व्रत में भगवान विष्णु को तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए। भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीच ये श्लोक पढकर जगाते हैं-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमंगलम्कुरु॥
या
उठो देव बैठो देव
हाथ-पाँव फटकारो देव
उँगलियाँ चटकाओ देव
सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
गन्ने का भोग लगाओ देव
उठो देव बैठो देव।।

श्री हरि को जागृत करके उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें।

फलहार:-

इस दिन काचरे का सागार लेना चाहिए । काचरा खरबुजे की प्रजाति का एक फल है।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

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एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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