Madira Paan Karne Walon ki Prajati

हा-हा ही-ही : बबलू भाई के सत्य के प्रयोग पार्ट-वन

“मदिरा पान करने वालों की प्रजाति” 

वैसे तो मदिरा पान करने वालों को किसी विभाजन के अंतर्गत लाना बहुत मुश्किल है लेकिन अपने बबलू भाई ने काफी रिसर्च के बाद इनको कुछ श्रेणियों में बांटा है, जैसे:

1. स्टेटस सिंबल समझने वाली प्रजाति: ये वे लोग हैं जो हर चीज को स्टेटस सिंबल से जोड़ कर देखते हैं। वैसे तो ये कहीं भी पाए जा सकते हैं लेकिन ज्यादातर ये नए रहीस होने के कारण शहरों में पाए जाते हैं। इनकी दारू की बोतल की कीमत किसी गरीब के मकान या खेत के जितनी भी हो सकती है और इसी शान-ओ शौकत को दिखाने के चक्कर में ये बर्बाद हो जाते हैं और बैंक के लोन की ई एम आई भरते भरते एक दिन राम को प्यारे हो जाते हैं।

2. दब्बू प्रजाति: यह वो प्रजाति है जो ज्यादातर मिडिल क्लास फेमिली में पाई जाती है। ये या तो स्टेटस सिंबल दिखाने वाले लोगों के दबाव में या अपने मुर्गा छाप दोस्तों के दबाव में मदिरा पान करते हैं। दोस्त कहते है कि तुझमें दम ही नहीं है, तू अभी मर्द ही नहीं है, तू तो अभी बच्चा है और ये बेचारे अपने आप को मर्द साबित करने के चक्कर में पीने लग जाते हैं।

3. शौकीन: यह वो प्रजाति है जो हर गांव और शहर में पाई जाती है। इनको कुछ करने या खाने पीने का शौक लग जाए बस बाकी तो फिर ये अपने बाप की क्या अपने आप की नहीं सुनते। बस इनको अपना शौक पूरा करना होता है चाहे उधार लेकर करें या फिर कुछ कमाकर। शराब से ज्यादा खर्चा तो ये चकने पर कर देते हैं और यही इनकी खासियत है। यह सबसे गरीब प्रजाति मानी जाती है।

अभी तक की जो प्रजाति हैं वो समाज को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन अपना भरपूर नाश कर लेते हैं।

4. शराबी: ये हर गली मौहल्ले में एक-आद की मात्रा में मिल ही जाते हैं। ये पीते तो कम हैं लेकिन दिखाते ज्यादा हैं मतलब सभी प्रजातियों में सबसे ज्यादा ड्रामेबाज यही होते हैं। इनकी पहचान ये है कि थोड़ी सी पीने के बाद ही इनके मुंह से अंग्रेज़ी की धारा बहने लगती है। यह सबसे ज्यादा ज्ञानी प्रजाति मानी जाती है मदिरा पान के बाद सारे ब्रह्मांड का ज्ञान इनमे समा जाता है। बच्चे इनसे दूर भागते हैं क्योंकि इनके ज्ञान के हथियार का सामना इनको ही करना पड़ता है।

5. पियक्कड़: इस प्रजाति से थोड़ा बच कर रहना पड़ता है क्योंकि थोड़ी सी मदिरा चखने के बाद ही इनके मुख से धारा प्रवाह श्लोक निकलने शुरू हो जाते हैं। ये साथ ही साथ हिंसा का प्रयोग भी करते हैं और अपने बल का सर्वाधिक प्रयोग ये अपनी पत्नियों पर करते दिखाई देते हैं और रही बची कसर अपने बच्चों पर निकाल देते हैं।

6. बेबड़ा: यह वो प्रजाति है जो मदिरा पान करने के बाद इहलोक और बैकुंठ के बॉर्डर पर जाकर बैठ जाती है मतलब ये समाज से दूर किसी नाली या नाले के पास या फिर एक आद डुबकी लगाकर उसके किनारे ही लेते हुए मिल जाते हैं। होली का त्यौहार इनका प्रिय त्यौहार होता है क्योंकि इस दिन इनको अपनी थोड़ी सी साख बचाने का मौका मिल जाता है कह देते हैं कि आज होली के दिन ज्यादा पिला दी।

7. डकारू: यह वो प्रजाति है जो फ्री की मदिरा मिलने पर अपने आप को कंट्रोल नहीं कर पाते और अपनी औकात से ज्यादा दारू पी लेते हैं और फिर यहां वहां उल्टी करते फिरते हैं और अपनी पत्नियों से अपनी कुटाई का इंतजाम करके घर पहुंचे हैं।

8. डम डकारु: यह प्रजाति भी फ्री की मदिरा की तलाश में इधर उधर भटकते रहते हैं पीते तो ये भी औकात से ज्यादा हैं पर समय के साथ इनकी क्षमता इतनी विकसित हो जाती है कि ये उल्टी वगैरा नहीं करते हैं लेकिन पत्नियों द्वारा कूटे ये भी भरपूर जाते हैं।

9. महा डकारू: ये मदिरा पान करने वाली प्रजाति में सबसे उच्च कोटि के होते हैं। वैसे तो ये रेअर ही मिलते हैं लेकिन कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं। इनको महा डकारू इसलिए कहा गया है क्योंकि इनका पेट नहीं कुआं होता है इनको जितनी पिलाओ ये मना नहीं करते बस पीते जाते है। ये शर्त लगाकर पीते हैं, फ्री का कोटा मिल जाए तो जबरदस्त पीते हैं। कुल मिलाकर इनका न तो दारू कुछ कर सकती है और न ही इनकी पत्नी।

10. कभी-कभारू: ये सबसे निम्न कोटि के मदिरा पान करने वाले माने जाते हैं लेकिन इनको सभी प्रजातियों में सबसे सभ्य माना जाता है। इनको पीने के लिए पत्नियों से भी छूट मिली हुई होती है क्योंकि ये किसी त्यौहार, शादी पार्टी, अन्य पार्टी पर या किसी गम के महौल में ही पीना पसंद करते हैं ।

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं और इनका उद्वेश्य सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन मात्र है। किसी की भावनाओं को आहत करने की कोई मंशा नहीं है। अत: दिल पर न लें।

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