षटतिला एकादशी व्रत कथा

षटतिला एकादशी व्रत कथा – माघ या माह मास कृष्ण पक्ष एकादशी

षटतिला एकादशी का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। यह एकादशी भगवन विष्णु को समर्पित है।

श्री सूत जी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का माहात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। युधिष्ठिर बोले- हे भगवान कृष्ण ! अब आप मुझे 26 एकादशियों के नाम , व्रत विधि बतलाइये , तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए, यह भी बताइए। भगवान कृष्ण बोले – हे युधिष्ठिर ! मैं दान, स्नान, तीर्थ, तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ परंतु एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है।

भगवान बोले- हे युधिष्ठिर ! माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम षट्तिला है। इस दिन छह रूपों में तिलों का प्रयोग किया जाता है, इसीलिए इस एकादशी को ‘षटतिला’ कहते हैं। इसमें (1) जल में तिल डालकर  स्नान (2) तिल से उबटन (3) तिल  से हवन (4) तिल की तिलाञ्जली सहित ठाकुर जी की चरणोदिक (5) तिल का भोजन (6) तिल का दान किया जाता है।

इसका माहात्म्य पुलस्त्य ऋषि ने दालभ्य को सुनाया था, नारद ऋषि को मैंने आगे सुनाया, क्योंकि इसमें मेरी पूजा की जाती है। इस कारण नारद मेरे पास आये और मैंने आँखोंदेखी बात सुनाई –

कथा:-

प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी थी जो भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। वह चन्द्रायणादि व्रत किया करती थी। व्रतों के प्रभाव से उसके समस्त पाप नष्ट हो गये और उसका शरीर शुद्ध हो गया था। परंतु वह किसी देवी-देवता या ब्राह्मण देव के निमित्त कोई अन्न दान आदि नहीं किया करती थी। इतना लंबा व्रत करते करते वह काफी दुर्बल  हो गई। मैंने विचार किया कि अब यह मरने वाली है, स्वर्ग अवश्य जायेगी, परंतु खाली हाथ और यह बैकुंठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी। जाकर इससे कुछ दान आदि माँग लूँ जिससे यह बैकुंठ के लिए भी कुछ अर्जित कर ले।

अतः एक दिन मैंने बैकुण्ठ लोक को त्याग कर उसके द्वार पर भिक्षा मांगने पहुंच गया। ब्राह्मण की पत्नी से जब मैंने भिक्षा की याचना की, तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात् वह देह त्याग कर व्रतों के प्रभाव से मेरे लोक में आ गई। यहाँ उसे एक कुटिया मिली और इस कुटिया में मिट्टी का पिंड मिला।

कुटिया को ऐसा देखकर वह घबराकर शीघ्र ही मेरी शरण में आकर पुकार करने लगी और बोली कि- मैं तो धर्मपरायण हूँ, फिर मुझे ख़ाली कुटिया क्यों मिली? आप अच्छे फलदाता हो आपने मेरे चन्द्रायणादि व्रतों का फल निष्फल कर दिया। मैंने उत्तर दिया, जो व्रत आपने किये हैं वह आपके पापों को भस्म कर आपको स्वर्ग में ले आये हैं और जो हाथ से दिया वह भी आपको मिल रहा है। ब्राह्मणी बोली यह दरिद्रता अब कैसे कटेगी? मैंने उससे कहा तुमको देवांगना देखने आएंगी । तुम द्वार बन्द रखना, और उनसे प्रथम षटतिला एकादशी का माहात्य सुन लेना।

वह ब्राह्मणी अपने भवन में गई द्वार बंद कर दिया। देव कन्या दर्शन को आईं और कहा द्वार खोलो और अपना मुख दिखाओ। ब्राह्मणी बोली पहले मुझे षटतिला एकादशी माहात्म्य को सुनाओ। देव स्त्रियां बोलीं कि बिगड़े हुए भाग्य को संवारने वाली षटतिला एकादशी है। जो गौ हत्या, ब्रह्म हत्या इत्यादि महापाप करने वाले को भी मुक्त कर देती है। जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था, ब्रह्माणी ने उस विधि से ‘षटतिला एकादशी’ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया में नन्दन वन की सारी विभूतियाँ प्रकट हो गई और कुटिया अन्न-धन से भर गई तथा मिट्टी के पिंड का आम बन गया। इस व्रत में तिल दान करने से एक हजार वर्ष तक स्वर्ग मिलता है।

षटतिला एकादशी के व्रत से जहां व्यक्ति की शारीरिक शुद्धि होती है वहीं इससे उसको आरोग्यता भी प्राप्त होती है। इस व्रत में तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इस व्रत कथा से ज्ञात होता है कि व्यक्ति अपने जीवन में जो दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे उसका पुण्य वैसा ही मिलता है। अतः व्यक्ति को अपने जीवन में धार्मिक कर्मकाण्ड के साथ-साथ दान आदि भी अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों आदि में वर्णित है कि बिना दान आदि के कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं माना जाता।

व्रत विधि:-

व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करके भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए।

इस व्रत में तुलसी का भोग लगाया जाता है। निंदक, चोर, दुराचारी, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी गलती हो जाए तो सूर्य देव की और मुख करके प्रार्थना करनी चाहिए।

फलाहार:-

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पेठा नारियल, जायफल, सुपारी, आदि से पूजा की जाती है। इस दिन तिल पट्टी का सागार शास्त्रकारों ने बताया है।

कीर्तन:-

रात्रि में भगवान विष्णु का नाम जप और कीर्तन करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

व्रत का समापन:-

द्वादशी के दिन प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके क्षमता अनुसार दान आदि करना चाहिए।

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एकादशी व्रत: आत्मा की शुद्धि का मार्ग

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